Saturday, May 9, 2020

रोटी


रोटी
महज़ भूख नहीं मिटाती
कभी-कभी
मौत की वजह बनकर
मिटा देती है ज़िंदगी भी

रोटी
मेहनतकशों को मजबूर करती है
नग्न पैर , भूखे-प्यासे
हजारों मील पैदल चलने
अनजान और बीहड़ रास्तों में
पगडंडियों में, सड़कों में
रेल की पटरियों में
ऊपर से गुजरती हुई मालगाड़ी
कर देती है अंग भंग
पककर गिरे हुए शहतूत के मानिंद
बिखरे देती है हाड़ मांस से बने शरीर को लोथड़ों में
बेमौत मार देती है
कभी रेल की पटरियों में तो कभी हाईवे में
फिर चेहरों की शिनाख़्त कर पाना मुमकिन नहीं होता

रोटी
जब चाहे
जाने कितनों को बना देती है
अनाथ-विधवा-विधुर
बच्चों , युवाओं और बूढ़ों के सर से
छीन लेती है जीवन का साया
रोटी और ज़िन्दगी की लड़ाई में
हर दौर में सत्ता भी रहती है शामिल
अक्सर यह लेती है बलि
अभिशप्त निम्न वर्ग की
फिर ऐसे ही बिछी मिलती हैं अनगिनत लाशें
रेल की पटरियों पर , चमचमाती सड़कों पर ।

©अमलेश कुमार

#औरंगाबाद_रेल_हादसा

2 comments:

Unknown said...

Super👌👌👌

Amlesh kumar said...

शुक्रिया 🙏

हिंदी दिवस (लघुकथा/व्यंग्य)

भादों का महीना है । सुबह के आठ बजे रहे हैं ।  तीन दिन बाद आज सूरज ने दर्शन दिया है । हल्की हवा के साथ काले बादल सफ़र कर रहे हैं , जैसे अब कुछ...