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यायावर होती हैं चींटियां
इनकी यायावरी ही
इन्हें बनाती है महान
भोजन और आवास की तलाश में
फिरती हैं इधर-उधर
कुछ पाने की ललक
इन्हें चढ़ा देती है
ऊँची चट्टानों और दीवारों पर
संगठित हो
ये तालश लेती हैं भोजन
उठा लेती हैं कई गुना भार
जितना भी उपलब्ध हो
मिल बांटकर खाती हैं
जठराग्नि से कभी नहीं मरती चींटियां
लड़ाई-झगड़े से इतर
चलती रहती है हँसी-ठिठोली
करती हैं आपस में बात
सुख-दुख में
निभाती हैं एक-दूसरे का साथ
बारिश हो या हो जाड़ा
या हो फिर चिलचिलाती धूप-गर्मी
ख़ुद को ढालती हैं वक़्त के साथ
मौसम का पूर्वानुमान लगा
अंडों और बच्चों को करती हैं संरक्षित
हर दौर का डटकर करती हैं सामना
फेरोमोन
महज़ एक रसायन नहीं
इनके अनुशासन का गुप्त सूत्र है
जिसके सहारे
करती हैं अपनों का अनुसरण
चलती हैं कतारबद्ध
श्रम , संगठन और संघर्ष के
यथार्थ को चित्रित करतीं
यायावर होती हैं चींटियाँ ।
✍ अमलेश कुमार
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