Saturday, April 25, 2020

किताबें महज़ किताबे नहीं होतीं

किताबें महज़ किताबें नहीं होतीं
ये गुज़रे वक़्त की तस्वीर होती हैं
बेजुबां होकर भी बोलती हैं
ये दुनियाभर के रहस्य खोलती हैं

किताबें हमसे बात करती हैं
कहानियां और गीत सुनाती हैं
किताबें अहसास बनकर
हमारे चेहरे पर मुस्कान लाती हैं

किताबें सफ़र में हमसफ़र होती हैं
कभी घर तो कभी छप्पर होती हैं
किताबों को ओढ़ता, बिछाता हूँ
मैं कभी किताबों संग सो जाता हूँ

हमारे संग हँसती हैं रोती हैं
किताबें अच्छी मित्र होती हैं
हमारे जीवन का सार हैं
किताबें ख़ुद एक संसार हैं

किताबें दरिया हैं समंदर हैं
ये हमारे बाहर हैं हमारे अंदर हैं
किताबें दरख़्त हैं परिंदे हैं
ये हर गाँव हर शहर के वासिंदे हैं

ख़ुसरो की पहेली कबीर की साखी हैं
अँधों का चश्मा,लंगड़ों की बैसाखी हैं
गिरते को सम्हलना सिखाती हैं
किताबें हमेशा सही राह दिखाती हैं

माँ की ममता, पिता का दुलार हैं
किताबें सबसे अनमोल उपहार हैं
ये फूल हैं मौसम हैं बहार हैं
ये नेपथ्य हैं रंगमंच हैं क़िरदार हैं ।

कविता - अमलेश कुमार

4 comments:

Unknown said...

साहित्य समाज का दर्पण होता है.अगर समाज को जानना है तो पहले साहित्य को जानना चाहिए.
कोई भी साहित्य हो.चाहे हिन्दी,अंग्रेजी, संस्कृत, मराठी, गुजराती,उड़िया, कन्नड़, तमिल, तेलगु आदि जो भी साहित्य हो सभी उस समय के तात्कालिक परिस्थितियों का सजीव चित्रण होता है.
चूंकि हिन्दी भाषा मेरी मातृभाषा है.हिन्दी भाषा की समझ है इसलिए शायद मैं हिन्दी प्रेमी हूँ.
हिन्दी से लगाव/प्रेमी होने की वजह से ही मैं ग्रेजुएशन में भी अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान और हिन्दी साहित्य लिया था.आईएएस के तैयारी भी वैकल्पिक विषय हिन्दी साहित्य लेकर ही की थी.
अफ़सोस कि मैं आईएसएस नहीं बन सकी.
भैया आपका हिन्दी साहित्य के प्रति प्रेम/जज्बा देखकर मुझे बहुत अच्छा लगता है.
आपको ब्लॉग की दुनिया में भी ढेर सारा प्यार और कामयाबी मिले.मेरी यही शुभकामनाएँ हैं.

Amlesh kumar said...

आपके इस स्नेह के लिए आपका हार्दिक आभार ।
आपके उज्ज्वल भविष्य के लिए मेरी ओर से ढेर सारी शुभकामनाएं । आशा करता हूँ आपको आपकी मंज़िल जरूर मिलेगी ।

Unknown said...

सही वक्तव्य

Amlesh kumar said...

जी शुक्रिया आपका

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