Wednesday, April 29, 2020

इरफ़ान ख़ान नहीं रहे

कला प्रेमियों के लिए दुःखद ख़बर है । बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता इरफ़ान खान अब हमारे बीच नहीं रहे । अचानक तबियत ख़राब होने की वजह से उन्हें मुम्बई के कोकिलाबेन हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था ,  वे लम्बे अरसे से कैंसर से लड़ रहे थे । आज उन्होंने अपनी अंतिम साँसें ली ।
आइये उन्हें याद करते हैं -
इरफान अली खान उर्फ़ इरफान खान का जन्म 7 जनवरी 1967 को जयपुर , राजस्थान में हुआ । वे हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी फ़िल्म व टेलीविजन के एक कुशल अभिनेता रहे हैं । इरफान खान ने अभिनय की शुरुआत टेलीविजन से की । उन्होंने दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रम 'चाणक्य' , 'भारत एक खोज' , और चंद्रकांता जैसे सुपरहिट धारावाहिकों में काम किया । द वारियर(2001) , मक़बूल(2003) , हासिल(2003) , द नेमसेक (2006) , डी-दे (2011) जैसी फिल्मों मे अपने अभिनय का लोहा मनवाया। 'हासिल' फिल्म के लिये उन्हे वर्ष 2004 का फ़िल्म फेयर सर्वश्रेष्ठ खलनायक का पुरस्कार प्राप्त हुआ ।
बॉलीवुड की 30 से ज्यादा फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवा चुके इरफान खान हॉलीवुड में भी एक चिरपरिचित नाम है । ए माइटी , स्लमडॉग मिलेनियर (2008) और द अमेजिंग स्पाइडर मैन जैसी फिल्मों में भी काम कर चुके हैं। 2008 में फ़िल्म 'लाइफ इन ए मेट्रो' के लिए फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार , 2011 में भारत सरकार द्वारा इन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया। 60वे राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार 2012 में इरफ़ान खान को फिल्म 'पान सिंह तोमर' में अभिनय के लिए श्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार दिया गया । इरफ़ान खान की आख़िरी फ़िल्म 'अंग्रेजी मीडियम' हाल ही मैं 13 मार्च को सिनेमाघरों में रिलीज़ हुई थी । इस फ़िल्म में इरफ़ान ने सिंगल पैरेंट की भूमिका निभाई है । हालांकि कोरोनो वायरस के फ़ैलते संक्रमण की वजह से यह फ़िल्म सिनेमाघरों में नहीं चल पाई ।
फिल्‍मों में जब इरफान खान डायलॉग बोलते थे तो लोग उनके अंदाज-ए-बयां के कायल हो जाते थे । सिनेमा प्रेमियों को इरफान खान की कमी बहुत खलेगी । हासिल, जज्‍बा, पान सिंह तोमर,  हैदर, चॉकलेट, द लंचबॉक्‍स, मदारी, डी-डे आदि फिल्‍मों में इरफान खान के डायलॉग सिनेमाप्रेमियों को बहुत भाए ।
उनके कुछ बेहतरीन डायलॉग्स-
फ़िल्म-ये साली ज़िन्दगी : "इश्‍क का एक प्रॉब्‍लम है, अगर एक की लगी तो दूसरे की भी लगनी है कभी न कभी ।"
फ़िल्म- लाइफ इन ए मेट्रो : "ये शहर हमें जितना देता है, बदले में उससे ज्‍यादा ले लेता है । "
फ़िल्म - दी-डे : "सिर्फ इन्‍सान गलत नहीं होते, वक्‍त भी गलत हो सकता है ।"
फ़िल्म - द किलर : "पिस्‍टल की ठंडी नली जब कनपटी पर लगती है ना, तब जिंदगी और मौत का फर्क समझ में आ जाता है । "
फ़िल्म- जज़्बा : "शराफत की दुनिया का किस्‍सा ही खत्‍म, अब जैसी दुनिया वैसे हम ।"
फ़िल्म- कसूर : "दौलत का नशा ... किसी भी ड्रग्स से ज्यादा खतरनाक नशा है । "
फ़िल्म - लकी कबूतर : "लड़की खूबसूरत हो और स्कूटी पर हो तो प्यार हो जाता है और लड़की बदसूरत हो और मर्सिडीज में हो तो प्यार झक मार के करना ही पड़ता है ।"

अपनी बेहतरीन अदाकारी और डायलॉग्स के लिए पहचाने जाने वाले इरफ़ान भले ही हमारे बीच नहीं रहे पर सिनेमा जगत में उनका योगदान सदा अविस्मरणीय रहेगा ।
ॐ शांति ।

आलेख- अमलेश कुमार
साभार- विकिपीडिया , गूगल ,विभिन्न न्यूज़ चैनल, सोशल मीडिया ।
फ़ाइल फ़ोटो - अभिनेता इरफ़ान ख़ान

Tuesday, April 28, 2020

यायावर होती हैं चींटियाँ


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यायावर होती हैं चींटियां
इनकी यायावरी ही
इन्हें बनाती है महान
भोजन और आवास की तलाश में
फिरती हैं इधर-उधर
कुछ पाने की ललक
इन्हें चढ़ा देती  है
ऊँची चट्टानों और दीवारों पर
संगठित हो
ये तालश लेती हैं भोजन
उठा लेती हैं कई गुना भार
जितना भी उपलब्ध हो
मिल बांटकर खाती हैं
जठराग्नि से कभी नहीं मरती चींटियां

लड़ाई-झगड़े से इतर
चलती रहती है हँसी-ठिठोली
करती हैं आपस में बात
सुख-दुख में
निभाती हैं एक-दूसरे का साथ
बारिश हो या हो जाड़ा
या हो फिर चिलचिलाती धूप-गर्मी
ख़ुद को ढालती हैं वक़्त के साथ
मौसम का पूर्वानुमान लगा
अंडों और बच्चों को करती हैं संरक्षित
हर दौर का डटकर करती हैं सामना

फेरोमोन
महज़ एक रसायन नहीं
इनके अनुशासन का गुप्त सूत्र है
जिसके सहारे
करती हैं अपनों का अनुसरण
चलती हैं कतारबद्ध
श्रम , संगठन और संघर्ष के
यथार्थ को चित्रित करतीं
यायावर होती हैं चींटियाँ ।

✍ अमलेश कुमार

Sunday, April 26, 2020

कोरोना का क़हर








हर गाँव, हर शहर में ये ख़बर है
हर तरफ़ अब कोरोनो का क़हर है ।

घर से मत निकलना ऐ मेरे दोस्तो
इन बहती फ़िज़ाओं में भी ज़हर है ।

कलियाँ खिली-खिली,परिंदे चहक रहे
लोग घरों में क़ैद अब शाम-ओ-सहर हैं ।

वक़्त कटता नहीं, काटना पड़ रहा है
बेचैनी का आलम अब तो हर पहर है ।

ज़िंदगी काम की चीज़ है सम्हालो इसे
बच गए तो धरती अपनी,अपना अम्बर है ।

Saturday, April 25, 2020

किताबें महज़ किताबे नहीं होतीं

किताबें महज़ किताबें नहीं होतीं
ये गुज़रे वक़्त की तस्वीर होती हैं
बेजुबां होकर भी बोलती हैं
ये दुनियाभर के रहस्य खोलती हैं

किताबें हमसे बात करती हैं
कहानियां और गीत सुनाती हैं
किताबें अहसास बनकर
हमारे चेहरे पर मुस्कान लाती हैं

किताबें सफ़र में हमसफ़र होती हैं
कभी घर तो कभी छप्पर होती हैं
किताबों को ओढ़ता, बिछाता हूँ
मैं कभी किताबों संग सो जाता हूँ

हमारे संग हँसती हैं रोती हैं
किताबें अच्छी मित्र होती हैं
हमारे जीवन का सार हैं
किताबें ख़ुद एक संसार हैं

किताबें दरिया हैं समंदर हैं
ये हमारे बाहर हैं हमारे अंदर हैं
किताबें दरख़्त हैं परिंदे हैं
ये हर गाँव हर शहर के वासिंदे हैं

ख़ुसरो की पहेली कबीर की साखी हैं
अँधों का चश्मा,लंगड़ों की बैसाखी हैं
गिरते को सम्हलना सिखाती हैं
किताबें हमेशा सही राह दिखाती हैं

माँ की ममता, पिता का दुलार हैं
किताबें सबसे अनमोल उपहार हैं
ये फूल हैं मौसम हैं बहार हैं
ये नेपथ्य हैं रंगमंच हैं क़िरदार हैं ।

कविता - अमलेश कुमार

हिंदी दिवस (लघुकथा/व्यंग्य)

भादों का महीना है । सुबह के आठ बजे रहे हैं ।  तीन दिन बाद आज सूरज ने दर्शन दिया है । हल्की हवा के साथ काले बादल सफ़र कर रहे हैं , जैसे अब कुछ...