●लॉकडाउन और प्रवासी मज़दूर●
जब हम
रात की गहराइयों में
मीठे सपनों में खोये थे
अपने-अपने छतों के नीचे
तब वे खुले आसमान तले
आँखों में अपने गाँव
अपने घर पहुँचने के सपने लिए
रह-रहकर गिन रहे थे तारे
जब हम
ले रहे थे स्वाद अपने घरों में
तरह तरह के व्यंजनों का
तब वे लड़ रहे थे
भूख और प्यास से
उनकी यह लड़ाई सदियों पुरानी है
जब हम
खोये थे अपनों के बीच
टीवी और स्मार्टफ़ोन में
तब वे खो चुके थे रास्ता
रास्ते की तलाश में
उनके पैरों के छाले
अब भी दे रहे हैं गवाही
जब हम
आराम फरमा रहे थे
पंखे , ए.सी. , कूलर
और गद्देदार चौपायों में
तब वे कर रहे थे बातें
कहीं चिलचिलाती धूप से
कहीं उठते , घुमड़ते
और बेमौसम बरसते बादलों से
वे चल रहे थे बहुत तेज़-तेज़
जैसे नाप लेना चाहते हों
धरती और आकाश के बीच की दूरी
निकल जाना चाहते हों वक़्त से बहुत आगे
हज़ारों मीलों के इस सफ़र में
हर मोड़ पर बदलती हवा
हँस रही थी उनकी मज़बूरियों पर ।
कविता - अमलेश कुमार
●विश्व मज़दूर दिवस को शुभकामनाएं●
प्रवासी मज़दूर , साभार- गूगल । |
रात की गहराइयों में
मीठे सपनों में खोये थे
अपने-अपने छतों के नीचे
तब वे खुले आसमान तले
आँखों में अपने गाँव
अपने घर पहुँचने के सपने लिए
रह-रहकर गिन रहे थे तारे
जब हम
ले रहे थे स्वाद अपने घरों में
तरह तरह के व्यंजनों का
तब वे लड़ रहे थे
भूख और प्यास से
उनकी यह लड़ाई सदियों पुरानी है
जब हम
खोये थे अपनों के बीच
टीवी और स्मार्टफ़ोन में
तब वे खो चुके थे रास्ता
रास्ते की तलाश में
उनके पैरों के छाले
अब भी दे रहे हैं गवाही
जब हम
आराम फरमा रहे थे
पंखे , ए.सी. , कूलर
और गद्देदार चौपायों में
तब वे कर रहे थे बातें
कहीं चिलचिलाती धूप से
कहीं उठते , घुमड़ते
और बेमौसम बरसते बादलों से
वे चल रहे थे बहुत तेज़-तेज़
जैसे नाप लेना चाहते हों
धरती और आकाश के बीच की दूरी
निकल जाना चाहते हों वक़्त से बहुत आगे
हज़ारों मीलों के इस सफ़र में
हर मोड़ पर बदलती हवा
हँस रही थी उनकी मज़बूरियों पर ।
कविता - अमलेश कुमार
●विश्व मज़दूर दिवस को शुभकामनाएं●
5 comments:
मन को झकझोर देने वाली कविता सर ।
इस देश के जिम्मेदार कब जागेंगे??????
क्या हकीकत को उकेरा है झरिया जी शब्दों में
शुक्रिया 🙏
जी शुक्रिया आपका 🙏
जी शुक्रिया
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